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20 Most Popular Classical Sher of Mirza Ghalib in Hindi | Mirza Ghalib Shayari in Hindi

February 25, 2022

Most Popular Classical Sher of Mirza Ghalib in Hindi


Aaye Hai Be-Kasi-E-Ishq Pe Rona ‘Ghalib’ - mirza ghalib, mirza ghalib shayari, mirza ghalib shayari in hindi, mirza ghalib shayari in urdu, mirza ghalib urdu shayari, mirza ghalib quotes, mirza ghalib poems, mirza ghalib poetry, mirza ghalib ghazal, mirza ghalib sher, mirza ghalib ki shayari, mirza ghalib college gaya, mirza ghalib books, mirza ghalib hindi, mirza ghalib in hindi
Aaye Hai Be-Kasi-E-Ishq Pe Rona ‘Ghalib’
Kis Ke Ghar Jaayega Sailaab-E-Balaa Mere Baad

आये है बे-कासी-इ-इश्क़ पे रोना ‘ग़ालिब’
किस के घर जाएगा सैलाब-इ-बला मेरे बाद


Unke Dekhe Se Jo Aa Jaati Hai Munh Pe Raunak
Wo Samajhte Hain Ki Beemar Ka Haal Acha Hai


उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पे रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है


कर्ज की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि 
हा रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन

Karz Ki Peete The May Lekin Samajhte The Ki 
Ha Rang Laavegi Hamaari Faaka-Masti Ek Din


Ishq Ne ‘Ghalib’ Nikamma Kar Diya
Varna Hum Bhi Aadmi The Kaam Ke

इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के


Mirza Ghalib Shayari in Hindi

Apni Gali Men Mujhko Na Kar Dafn Baad-E-Qatl
Mere Pate Se Khalq Ko Kyun Tera Ghar Mile


अपनी गली में मुझको न कर दफ़्न बाद-इ-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले


कहाँ मैखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वैज,
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था की हम निकले

Kahaan Maikhane Ka Darwaza ‘Ghalib’ Aur Kahaan Waiz,
Par Itna Jaante Hain Kal Vo Jaata Tha Ki Ham Nikle


Aage Aati Thi Haal-E-Dil Pe Hansi
Ab Kisi Baat Par Nahi Aati

आगे आती थी हाल-इ-दिल पे हंसी
अब किसी बात पर नहीं आती


आशिक़ हूँ पे माशूक़-फरेबी है मेरा काम
मजनू को बुरा कहती है लैला मेरे आगे

Aashiq Hoon Pe Mashooq-Farebi Hai Mera Kaam
Majnu Ko Bura Kahti Hai Laila Mere Aage


Is Nazaaqat Ka Bura Ho Vo Bhale Hain To Kya
Haath Aave To Unhe Haath Lagaye Na Bane

इस नज़ाक़त का बुरा हो वो भले हैं तो क्या
हाथ आवे तो उन्हें हाथ लगाए न बने


Qasid Ke Aate-Aate Khat Ek Aur Likh Rakhoon
Main Jaanta Hoon Jo Vo Likhenge Jawab Mein


क़ासिद के आते-आते ख़त इक और लिख रखूँ
मै जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में


Is Saadgi Pe Kaun Na Mar Jaye Aye Khuda
Ladte Hain Aur Haath Mein Talwar Bhi Nahi


इस सादगी पे कौन न मर जाये ए खुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं


Kaaba Kis Munh Se Jaaoge ‘Ghalib’
Sharm Tum Ko Magar Nahi Aati

काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुम को मगर नहीं आती


Etibar-E-Ishq Kee Khana-Kharaabi Dekhna
Gair Ne Kee Aah Lekin Vo Khafaa Mujh Par Huye

एतिबार-इ-इश्क़ की खाना-खराबी देखना
गैर ने की आह लेकिन वो खफा मुझ पर हुये


Aaina Dekh Apna Sa Munh Le Ke Rah Gaye
Saahab Ko Dil Na Dene Pe Kitna Guroor Tha


आइना देख अपना सा मुंह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना गुरुर था


Qata Keejiye Na Taalluk Ham Se
Kuchh Nahi Hai To Adaavat Hi Sahi


काटा कीजिये न तअल्लुक़ हम से
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही


कितने शीरीं है तेरे लब की रक़ीब
गालियाँ खा के बे-मज़ा न हुआ

Kitne Shireen Hai Tere Lab Ki Raqeeb
Galiyan Kha Ke Be-Mazaa Na हुआ


की मेरे क़त्ल के बाद उसने जफ़ा से तौबा
हाय उस जोड़-पशिमान का पशिमान होना

Ki Mere Qatl Ke Baad Usne Jafa Se Tauba
Haye Us Zood-Pashiman Ka Pashiman hona


Udhar Vo Bad-Gumani Hai Idhar Ye Naa-Tavaani Hai
Na Poochha Jaaye Hai Us Se Na Bola Jaaye Hai Mujh Se

उधर वो बद-गुमानी है इधर ये ना-तवानी है
न पूछा जाए है उस से न बोलै जाये है मुझ से


Aata Hai Daagh-E-Hasrat-E-Dil Ka Shumaar Yaad
Mujh Se Mire Gunah Ka Hisaab Ai Khuda Na Maang

आता है दाग़-इ-हसरत-इ-दिल का शुमार याद
मुझ से मिरे गुनाह का हिसाब ऐ खुदा न मांग


Ishq Par Zor Nahi Hai Ye Vo Aatash ‘Ghalib’
Ki Lagaaye Na Lage Aur Bujhaaye Na Bane

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने



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मिर्ज़ा ग़ालिब की अनमोल शायरी | Most Popular Classical Sher of Mirza Ghalib (in Hindi and English)

February 25, 2022

Mirza Ghalib Ke Sher

मिर्ज़ा ग़ालिब का पूरा नाम मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ान था। वह मुगल साम्राज्य के अंतिम वर्षों के दौरान एक प्रमुख उर्दू और फ़ारसी भाषा के कवि थे। वह अब तक के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक हैं।
मिर्ज़ा ग़ालिब की अनमोल शायरी | Most Popular Classical Sher of Mirza Ghalib (in Hindi and English)
उन्होंने खुद को एएसएडी नाम दिया, जो उनके मूल नाम असदुल्लाह से लिया गया था। और ज्यादातर इस्तेमाल किया जाने वाला पेन का नाम ग़ालिब था। यह कविता लोगों के दिन-प्रतिदिन के जीवन में इस्तेमाल की जाती है। कई लोग अपनी शायरी और कविताएँ सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर पोस्ट करते थे। तो नीचे दिए गए मिर्ज़ा ग़ालिब के कुछ बेहतरीन शायरी हैं।

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया

गैर ले महफ़िल में बोसे जाम के 
हम रहें यूँ तश्ना-ऐ-लब पैगाम के

खत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो 
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के 

इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया 
वरना हम भी आदमी थे काम के

2. कोई दिन गर ज़िंदगानी और है

कोई दिन गर ज़िंदगानी और है 
अपने जी में हमने ठानी और है 

आतिश-ऐ-दोज़ख में ये गर्मी कहाँ 
सोज़-ऐ-गम है निहानी और है

बारह देखीं हैं उन की रंजिशें, 
पर कुछ अब के सरगिरानी और है 

देके खत मुँह देखता है नामाबर,
कुछ तो पैगाम-ऐ-ज़बानी और है 

हो चुकीं ‘ग़ालिब’ बलायें सब तमाम,
एक मर्ग-ऐ-नागहानी और है.


3. इश्क़
आया है मुझे बेकशी इश्क़ पे रोना ग़ालिब 
किस का घर जलाएगा सैलाब भला मेरे बाद


4. बाद मरने के मेरे
चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ, चंद हसीनों के खतूत .
बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला

मिर्ज़ा ग़ालिब की अनमोल शायरी


5. दिया है दिल अगर
दिया है दिल अगर उस को , बशर है क्या कहिये 
हुआ रक़ीब तो वो , नामाबर है , क्या कहिये

यह ज़िद की आज न आये और आये बिन न रहे 
काजा से शिकवा हमें किस क़दर है , क्या कहिये

ज़ाहे -करिश्मा के यूँ दे रखा है हमको फरेब 
की बिन कहे ही उन्हें सब खबर है, क्या कहिये

समझ के करते हैं बाजार में वो पुर्सिश -ऐ -हाल 
की यह कहे की सर-ऐ-रहगुज़र है, क्या कहिये

तुम्हें नहीं है सर-ऐ-रिश्ता-ऐ-वफ़ा का ख्याल 
हमारे हाथ में कुछ है, मगर है क्या कहिये

कहा है किस ने की “ग़ालिब ” बुरा नहीं लेकिन 
सिवाय इसके की आशुफ़्तासार है क्या कहिये


6. कोई दिन और
मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें 
चल निकलते जो में पिए होते 

क़हर हो या भला हो, जो कुछ हो 
काश के तुम मेरे लिए होते 

मेरी किस्मत में ग़म गर इतना था 
दिल भी या रब कई दिए होते 

आ ही जाता वो राह पर ‘ग़ालिब ’
कोई दिन और भी जिए होते


7. दिल-ऐ -ग़म गुस्ताख़
फिर तेरे कूचे को जाता है ख्याल 
दिल-ऐ-ग़म गुस्ताख़ मगर याद आया
कोई वीरानी सी वीरानी है .
दश्त को देख के घर याद आया


8. हसरत दिल में है
सादगी पर उस के मर जाने की हसरत दिल में है 
बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है
देखना तक़रीर के लज़्ज़त की जो उसने कहा 
मैंने यह जाना की गोया यह भी मेरे दिल में है


9. बज़्म-ऐ-ग़ैर
मेह वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ऐ-ग़ैर में या रब 
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपना 

मँज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते “ग़ालिब”
अर्श से इधर होता काश के माकन अपना


10. साँस भी बेवफा

मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब 
यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी


11. सारी उम्र
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब 
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे


12. इश्क़ में
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब 
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है


13. जवाब
क़ासिद के आते-आते खत एक और लिख रखूँ 
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में


14. जन्नत की हकीकत
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन 
दिल के खुश रखने को “ग़ालिब” यह ख्याल अच्छा है


15. बेखुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं 
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है 

बेखुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब’
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है


16. शब-ओ-रोज़ तमाशा
बाजीचा-ऐ-अतफाल है दुनिया मेरे आगे 
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे


17. कागज़ का लिबास
सबने पहना था बड़े शौक से कागज़ का लिबास 
जिस कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले 

अदल के तुम न हमे आस दिलाओ 
क़त्ल हो जाते हैं, ज़ंज़ीर हिलाने वाले


18. वो निकले तो दिल निकले
ज़रा कर जोर सीने पर 
की तीर-ऐ-पुरसितम् निकले 

जो वो निकले तो दिल निकले, 
जो दिल निकले तो दम निकले


19. खुदा के वास्ते
खुदा के वास्ते पर्दा न रुख्सार से उठा ज़ालिम 
कहीं ऐसा न हो जहाँ भी वही काफिर सनम निकले


20. तेरी दुआओं में असर
तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिला के दिखा 
नहीं तो दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख


21. जिस काफिर पे दम निकले
मोहब्बत मैं नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का 
उसी को देख कर जीते है जिस काफिर पे दम निकले


22. लफ़्ज़ों की तरतीब
लफ़्ज़ों की तरतीब मुझे बांधनी नहीं आती “ग़ालिब”
हम तुम को याद करते हैं सीधी सी बात है


23. तमाशा
थी खबर गर्म के ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े,
देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ


24. काफिर
दिल दिया जान के क्यों उसको वफादार, असद 
ग़लती की के जो काफिर को मुस्लमान समझा


25. नज़ाकत
इस नज़ाकत का बुरा हो, वो भले हैं तो क्या 
हाथ आएँ तो उन्हें हाथ लगाए न बने 

कह सके कौन के यह जलवागरी किस की है 
पर्दा छोड़ा है वो उस ने के उठाये न बने


26. तनहा
लाज़िम था के देखे मेरा रास्ता कोई दिन और
तनहा गए क्यों, अब रहो तनहा कोई दिन और

इन्हे भी पढ़े: 20 Most Popular Classical Sher of Mirza Ghalib in Hindi


27. रक़ीब
कितने शिरीन हैं तेरे लब के रक़ीब 
गालियां खा के बेमज़ा न हुआ 

कुछ तो पढ़िए की लोग कहते हैं 
आज ‘ग़ालिब‘ गजलसारा न हुआ


28. मेरी वेहशत
इश्क़ मुझको नहीं वेहशत ही सही 
मेरी वेहशत तेरी शोहरत ही सही 

कटा कीजिए न तालुक हम से 
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही


29. ग़ालिब
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई 
दोनों को एक अदा में रजामंद कर गई

मारा ज़माने ने ‘ग़ालिब’ तुम को 
वो वलवले कहाँ, वो जवानी किधर गई


30. तो धोखा खायें क्या
लाग् हो तो उसको हम समझे लगाव 
जब न हो कुछ भी, तो धोखा खायें क्या


31. अपने खत को
हो लिए क्यों नामाबर के साथ-साथ या रब! 
अपने खत को हम पहुँचायें क्या


32. उल्फ़त ही क्यों न हो
उल्फ़त पैदा हुई है, कहते हैं, हर दर्द की दवा 
यूं हो हो तो चेहरा -ऐ -गम उल्फ़त ही क्यों न हो .


33. ऐसा भी कोई
ग़ालिब बुरा न मान जो वैज बुरा कहे 
ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहे जिसे


34. तमन्ना कोई दिन और
नादान हो जो कहते हो क्यों जीते हैं ग़ालिब
किस्मत मैं है मरने की तमन्ना कोई दिन और


35. आशिक़ का गरेबां
हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की किस्मत ग़ालिब 
जिस की किस्मत में हो आशिक़ का गरेबां होना


36. शमा 
गम-ऐ-हस्ती का असद किस से हो जूझ मर्ज इलाज 
शमा हर रंग मैं जलती है सहर होने तक ..


37. जोश -ऐ -अश्क
ग़ालिब हमें न छेड़ की फिर जोश-ऐ-अश्क से 
बैठे हैं हम तहय्या-ऐ-तूफ़ान किये हुए


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कोई उम्मीद बर नहीं आती - Koi Ummeed Bar Nahi Aati | Mirza Ghalib Shayari

December 12, 2019


कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती

मौत का एक दिन मु'अय्यन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती

आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती

(बर नहीं आती = पूरी नहीं होती), 
(सूरत = उपाय)
(मु'अय्यन = तय, निश्चित)

Koi Ummeed Bar Nahi Aati
Koi Soorat Nazar Nahi Aati

Maut Ka Ek Din Muayyan Hai
Neend Kyon Raat Bhar Nahi Aati

Aage Aati Thi Haal-e-dil Pe Hasi
Ab Kisi Baat Par Nahi Aati

(Bar Nahin Aati = Pooree Nahi Hoti), 
(Soorat = Upaay)
(Muayyan = Tay, Nishchit)

इन्हे भी पढ़े: गुलज़ार शायरी ( Gulzar Shayari )

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